ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार!

*यादें भगत बनारसी दास जी*

-त्रिलोक चंद समतावादी-

( इस लेख मे एक ऐसी घटना का वर्णन है जिसे लेखक ने छत्तिस (36) वर्ष अपने तक ही छिपाए रखा। प्रचार-प्रसार समिति के विशेष अनुरोध पर भगत जी के साथ अपने अनुभव अब संगत से सांझा कर रहे हैं)

मुझे भगत जी का साथ बहुत समय तक मिला। मैं उस समय जवानी की दहलीज़ पर था जब पहली बार उनके संपर्क मे आया। मै जहाँ भी रहा, सत्गुरु महात्मा मंगत राम जी की शिक्षाओं का प्रचार सत्संग सम्मेलनों द्वारा करता रहा। हिमाचल प्रदेश मे इस प्रोग्राम मे श्री नरेंद्र जींदल जी का बहुत बडा योगदान रहा। फलस्वरूप नए नए लोग संगत से जुड रहे थे। ऐसे सभी प्रेमी नाम दान लेने के इच्छुक होते थे।

इन प्रेमियों की बीज मंत्र या नामदान के प्रति इच्छा को देखते हुए मैने नरेन्द्र जी से बात की और उन्हें बताया कि प्रेमी चाहते हैं कि उन्हें नामदान मिले। उनसे पूछा कि ये कैसे संभव हो सकता है। तब उन्होंने मुझे भगत जी से सम्पर्क करने को कहा।

अक्तूबर सन 1973 को जगाधरी वार्षिक सम्मेलन पर भगत जी से सम्पर्क किया। उस समय लगभग 22 साल की उमर मे मै गाँव गाँव जा कर सत्संगों का आयोजन किया करता था। इस प्रयास मे मेरे साथ युवा प्रेमी मूल राज बाली, हरबंस लाल, फ़कीर चंद, कुलदीप सिंह तथा कई और भी भागीदार रहे। इनमे से श्री मूल राज बाली और श्री हरबंस लाल जी ने कई बार संगत के सेंट्रल प्रबंधक मंडल मे अपनी सेवाएं दी।. हाल ही मे ये दोनो प्रेमी सदा के लिए हमे छोड गये हैं।

भगत जी द्वारा सत्संग सम्मेलनो मे सहयोग: श्रद्धालुओं के अनुरोध पर उन्हें श्री भगत से नाम दिलवाना शुरू किया। उस समय मैं भगत जी के साथ रहता इस शुभ कार्य को पूर्ण करवाता। चण्डीगड के पास सारंग पुर और मुल्लां पुर गाँवों मे मैं वर्ष 1979 तक रहा। फिर मेरी बदली शिमला हो गई। यहां भी भगत जी मेरे पास कई बार आये। तभी शिमला मे सत्संग तथा वार्षिक सम्मेलन शुरू किये गए।
भगत जी 1981 और 1982 के वार्षिक सम्मेलनो मे शिमला आकर वहां प्रचार करने मे सहयोग किया। अगले वर्ष ही मेरी बदली ऊना हो गई। भगत जी ने यहाँ भी आना जाना कर आसपास कई गाँवों मे सत्संग शुरू किये जिस से कि कई नए जिज्ञासु संगत से जुडे। यह एक लम्बी दास्तान है।

भगत जी का आशीर्वाद मे पगडी भेंट करना- अन्तर्प्रेरणा से एक वर्णन नहीं करना चाहता था पर फिर भी आज इसे लिख देना मुनासिब समझता हू। नवम्बर 1984 के प्रथम सप्ताह मे भगत जी, ऊना के पास गाँव अजनौली मे वहां के प्रधान ठाकुर साध राम जी के यहां ठहरे हुए थे। उल्लेखनीय है कि ठाकुर जी महात्मा मंगत राम जी महाराज से दीक्षित शिष्य थे। उन दिनों इंदिरा गाँधी की हत्या के विरोध मे जगह जगह सिख विरोधी दंगे हो रहे थे। भगत जी से मिलने हेतु मै ऊना से मोटर साईकल लेकर अजनौली की ओर चल पडा। रास्ते मे दंगा हो रहा था। बडी मुश्किल से जान बचा कर मै अजनौली भगत जी के पास पहुंचा। मुझे घबराया देख कर भगत जी ने कहा कि आप पर सत्गुरुदेव की विशेष कृपा है आप का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। यह कह कर उन्होंने अपनी पगडी उतार कर मेरे सिर पर रख दी। उस समय मै बहुत भावुक हो गया। ठाकुर साध राम वहीं पर थे। उन्होंने उठ कर मुझे गले लगाया और आशीर्वाद दिया कि आप धन्य हो गए हो। आज भी वह पगडी मेरे पास सुरक्षित है।

अंतिम मिलन: भगत जी अंतिम दिनों मे एक सप्ताह ऊना मे मेरे निवास स्थान पर हमारे साथ रहे। इस से पहले वे ग्राम मवां कहोलाँ (दौलत पुर चौक के पास) काफ़ी दिन ठाकुर कृष्ण कुमार जी के घर पर ठहरे थे। उस समय वे काफ़ी बीमार चल रहे थे। मुझे कुछ ऐसा याद पडता है कि इधर ज़िला ऊना से वे जगाधरी होते हुए रिशी साहिब के घर करनाल गए जहां उन्होने शरीर त्याग दिया।

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