ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार!
*एक महान विभूति: आखिरी सुबह*
-मेजर पी. एल. रिशी (से.नि)-
अपने जीवन को सारे रिश्तो से विलग कर समूचे तौर पर की सेवा को अर्पण करने वाले सत्गुरु चरण निवासी भक्त बनारसीदास जी के दर्शन करने का सौभाग्य मुझे सर्वप्रथम नौ साल की उम्र मे सन १९४७ मे प्राप्त हुआ जब वे महाराज महात्मा मंगत राम जी के साथ काफ़ी समय श्रीनगर रहने के बाद वापसी पर कुछ दिन जम्मू रुके | इसके बाद हमारे पूरे परिवार का सम्पर्क महाराज जी बना रहा।
वर्ष 1954 मे महाराज जी के शरीर छोडने के बाद भगत जी भी गुरुदेव की भांन्ति शहर शहर, गाँव-गाँव जाकर जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन करते रहे।
यह मेरा सौभाग्य ही था कि फ़ौज मे सेवारत होते हुए भी भगत जी से मेरा सम्पर्क सदा बना रहा तथा उनकी कृपा मुझ पर सदैव बनी रही। निश्चय ही वे एक अलौकिक महापुरुष थे जिनके नाम को सदा अमर रहने का आशीर्वाद सत्पुरुष महात्मा मंगत राम जी ने उनकी अतुल सेवा भक्ति के फलसरूप दिया था जो आज मानवमात्र के संमुख अमर वाणी ग्रंथ श्री समता प्रकाश और श्री समता विलास के रूप मे प्रगट है।
भगत जी को नाद अनुभव करवाया जाना:
महाराज जी की वाणी के यह दोनो ग्रंथ भगत जी के हाथ से गुरुदेव के जीवन काल मे ही लिखे गए तथा प्रकाशित भी हो गए थे। एक दिन भक्त जी ने महाराज जी से पूछा, “ महाराज जी, नाद महिमा मे आपने फ़र्माया है कि नाद की घोर गर्जना होती है और करोडों सूर्यों से भी अधिक प्रकाश होता है। जबकि कि सूर्य का भी इतना प्रकाश होता है कि उस की ओर आंख उठा कर देखना भी संभव नहीं होता, और ना हो कोई गर्जना ही सुनाई देती है।“
भक्त जी को समझाते हुए श्री महाराज जी ने कहा, प्रेमी इस अवस्था मे बुद्धि के परम तत्व मे लीन हो कर, तथा ठंडक और तपिश से न्यारी हो कर घोर गर्जना को बाहिर नहीं निकलने दिया जाता। यह कह कर भगत जी पर अपार कृपा करते हुए ऐसी अवस्था का अनुभव कराने के लिए अपना कुर्ता उठा कर पीठ पर कान लगा कर सुनने की आज्ञा दी। भक्त जी के कथनानुसार उन को अनेक प्रकार के सुंदर रागअर्थात छत्तीसों राग एक ही रुप मे नीचे से ऊपर उठते हुए अनुभव हुए और मन बिल्कुल शून्य हो रहा।
तपस्थली ज्योलिकोट का निर्माण:
हल्दवानी से आगे सुदूर न सुंदर स्थान ज्योलिकोट मे भगत जी ने एक आश्रम बना कर तपस्या की। जो भी श्रद्धालु वहां जाता, भगत जी स्वयं उसकी सेवा करते। यहां महाराज जी के प्रथम शिष्य महंत रतन दास जी भी कुछ समय भगत जी के साथ रहे और तप किया। बाद मे अपने हाथों लिखित वसीयत द्वारा इस आश्रम का प्रबंध देहरादून निवासी ट्रस्टी श्री ओम कपूर की देखरेख मे दे दिया।
माधोपुर मे तप तथा आखिरी समय:
वर्ष 1986 मे भगत जी अस्वस्थ थे। दिल का दौरा भी पड चुका था. फिर भी शिष्यों की प्रार्थना पर कई स्थानो पर जा जा कर सत्संग सम्मेलनों मे शामिल होते रहे। पंजाब मे अनेक जगह होते वे माधोपुर पहुंचे। वहां कई दिनो तक तप किया।
भगत जी जब माधो पुर से चलने लगे तो भगत जी से नाम प्राप्त शिष्या श्रीमति सुभाश रानी ने भक्त जी को प्रार्थाना की कि कुछ दिन और विश्राग करें क्योकि भक्तजी को दिल का दौरा थोड़े दिन पहले पड़ चुका था। भक्तजी ने कहा यह शरीर तुम्हारे या करनाल मे पीताम्बर रिशी के घर छोड़ा जाएगा।
भक्तजी को अपने अंतिम समय आ जाने का आभास हो गया था। इतने अस्वस्थ शरीर से भी वे अंत समय तक अपने शिष्यों की सेवा मे लगे रहे। माधोपुर से जगाधरी आश्रम और अन्य स्थानो पर अपने शिष्यों को उनकी आध्यात्मिक उन्नति हेतु सदोप्देश देते हुए 14 जनवरी दोपहर के बाद दास के घर करनाल पहँचे।
दास उस समय NDRI मे सिक्योरिटी अफ़सर नियुक्त था। जब शाम को घर आया तो भक्तजी से मिल कर मन अति प्रसन्न हुआ। रात को देर तक बैठ कर संशय निवारण करते रहे।
गुरुभक्ति, सेवा और प्रेम की साक्षात उस पवित्र आत्मा की मानव शरीर रूप में अपने शिष्यों की सेवा तथा कल्याण हेतु यह आखिरी यात्रा थी। दास का निवास स्थान आखिरी पडाव था, रात आखिरी रात थी और आने वाली सुबह आखिरी सुबह।
प्रातः काल दिल का दौरा पडा । फौरन हस्पताल ले जाने की सलाह दी। भक्तजी पसीने से भीगे हुए थे जबकि इतनी ज्यादा धुंध थी कि स्वत: हाथ को दूसरा हाथ नही सूझ रहा था। वे बनैन और पाजामा मे थे। प्रार्थना की कि भक्त जी हस्पताल जाने के लिए तैयार हो जाओ। इस पर उन्होंने कहा कि 'आखरी समय है , घर पर ही प्राण त्यागेंगे।"
दास ने कहा भक्त जी आपको इतने कष्ट में देख कर आश्चर्य हो रहा है - कि आप इस कष्ट को कैसे सहन कर रहे हैं। आपको आक्सीजन लगाने की अति आवष्यकता है। डाक्टर बता रहा है। भगतजी, ने प्रार्थना स्वीकार कर ली पर ईश्वर को कुछ और ही मन्जूर था। भक्त जी हमे रोता हुआ छोड ईश्वर चरणो मे विलीन हो गए।
जाने से पहले भगत जी कह गए कि उनके पास कुछ धन राशी है वह जहांगीर पुर ओम प्रकाश को दे देना। यह बात उन्होंने तीन बार दास से कही। उल्लेखनीय है कि स समय अलीपुर जहांगीर पुर मे आश्रम भवन निर्माणाधीन था।
ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार।