ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार!

*सदगुरुदेव द्वारा भगत जी की रक्षा*

गुरु नाम है ज्ञान का, शिष सीख ले सोई। ज्ञान मर्यादा जाने बिना, गुरू और शिष न कोई।

गुरु शिष्य संबंध कायम है उस ज्ञान की मर्यादा पर, जो सद्गुरु के सत् उपदेश से शुरू होकर, शिष्य को अपने उपदेश का रूप बनाकर छोड़ती है। तब गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं रहता।

यदि गुरू उंगली पकड़कर राह दिखाता है, तो एक पिता समान अपने शिष्य की सब प्रकार से रक्षा भी करता है। सदगुरुदेव और भगत बनारसी दास जी के गुरु शिष्य के रिश्ते से साफ पता चलता है कि जब भी भगत जी को संसारियों ने घेरा चाहा, आप प्यार से वापिस बुला कर सेवा में लगा लेते और जब शारीरिक कष्ट झेलने का वक्त आया तो सदगुरुदेव बस इकहरे बदन की ओट देकर अपने शिष्य की रक्षा करने से पीछे नहीं हटे। सतगुरु देव की जीवन कथा साफ - साफ कह रही है कि 16 नवंबर 1942 को तूफानी रात को तरनतारन में भगत जी बुखार में मुबतला खमें में लेटे हुए थे और आंधी और बारिश ने खेमा उखाड़ कर फेंक दिया था तो सारी रात गुरुदेव ने अपने नाज़ुक शरीर से ही भगत जी के शरीर को ढाँपे रखा, बारिश और आंधी के बीच सारी रात एक पेड़ के नीचे ही गुज़ार दी थी। सदगुरुदेव द्वारा शिष्य की ऐसी आदर्श रक्षा अभी तक तो पढ़ने और सुनने में नहीं आई है।

भगत जी को गुरू प्राप्त हुई क्योकि वह पहले पात्र बने, गुरू मय हुए। पूर्ण रूप में गुरू को समर्पित हुये, और अपने आप को गुरू चरणों मे न्योछावर कर दिया था।

इसलिए जहाँ सदगुरुदेव शिष्यों की शरीर की रक्षा करतें रहेगे, वहाँ शिष्यों को सत्मार्ग पर लगने में कितने कष्ट झेलने होगे।

ऐसे तत् वेता गुरू के वचनों पर चलना शिष्य का कर्तव्य हैं।

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