ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार!

*साधना स्थली ज्योलिकोट यात्रा*

-प्रदीप आनंद-

यह बात मार्च 1983 की है , दास मय प्रेमियों के जिसमे स्वर्गीय प्रेमी सुखदेव राज महाजन , स्वर्गीय श्री रमेश सिक्का एवं श्री सुभाष दुग्गल जी के भी शामिल थे, परम पूज्य भगत श्री बनारसी दास जी के निमंत्रण पर उनकी साधना स्थली ज्योलिकोट आश्रम पहुंचे। यह स्थान हल्द्वानी से नैनीताल के रास्ते में है। यह दुर्गम व् मनोरम स्थल पूज्य भगत जी ने अपने स्वयं साधना हेतु एकआश्रम का निर्माण किया और वर्षों तपस्या की थी | आसपास की जनता बहुत गरीब और असक्षम थी। परन्तु भगत जी उन सब की निरंतर सेवा भाव से मदद करते रहते थे। भगत जी को संगत के प्रेमियों से जो भी सेवा रूप में प्राप्त होता , वह वहां की गरीब जनता में वितरण कर देते थे।

जब हम प्रेमियों को स्नेह पूर्वक निमंत्रण मिला तब ४-५ दिन के लिए हम उस दुर्गम स्थान पर पहुंचे, जहाँ पहुंचने के लिए कोई सुलभ रास्ता नहीं था। हमारी बस ने करीब 8:30 - 9:00 बजे हमे रात्रि के समय ज्योलिकोट स्टैंड पर उतार दिया। अंधेरी रात में जब हमने चलना शुरू करा , तो एक छोटी सी पानी की पकडंडी के सहारे, जो की खेतो में पानी दने के लिए बनायीं गयी थी , ॐ ब्रह्म सत्यम का जाप करते हुए हम उसके साथ साथ चलते रहे। बहुत अंधेरा था, पर जब आश्रम के निकट देखा कि सामने भगत जी लालटेन लिए हमारी प्रतीक्षा में खड़े थे जब कि उस समय कोई मोबाइल या टेलीफोन नहीं था।लेकिन उन्हें हमारे आने का जैसे पहले हीआभास हो गया हो | हमारे लिए पूज्य भगत जी ने पहले से ही अपने हाथो से भोजन बना रखा था। घनी सर्दी थी। भगत जी ने नीचे वाली फ्लोर पर रसोई में लकड़ी से जलने वाले चूल्हे में लकड़ियां जलाकर उस कोठरी को गरम कर दिया। रात्रि के समय , लोहे की टीनो वाली छत पर थपथप की भयंकर आवाज़ हुई। सुबह भगत जी ने बताया की यहाँ रीछ व् अन्य जंगली जानवर निरंतर रात्रि भ्रमण करते रहते है. सुबह जब उठे तो हमने देखा की वहां पानी का एक झरना था, जहाँ हमे स्नान करना था परन्तु वहां पानी में बहुतसारी जोके थी। ऐसे दुर्गम स्थान पर पूज्य भगत जी घोर तप किया करते थे।

वहीँ थोड़ी दूरी पर एक विशाल पत्थर था | भगत जी हमे बताया कि पूज्य संत रतन दास जी ने वहां उस पत्थर पर निरंतर 40 दिन तक घोर साधना की थी। भगत जी के इस मनोरम आश्रम में आम के वृक्ष थे और उनपर बहुत बड़े बड़े आम लगते थे। भगत जी हर प्रातः दलिया बनाते और उसमे मीठे मीठे आम डालकर हमे नाश्ते में देते।

रसोई मे बहुत धुआं होता था। वहां खाना बनाना हर किसी के बस की बात नहीं थी। लेकिन हम जितने दिन वहां रहे ,पूज्य भगत जी ने अपने हाथ से भोजन बनाया और हमे कोई भी कार्य करने नहीं दिया। कितना सेवा भाव था भगत जी में इसका अनुमान इस बात से सहज ही लगाया जा सकता है।

जब हम वापिस चलने लगे तो पूज्य भगत जी ने अपने स्नेहपूर्वक आशीर्वाद के साथ आमो का प्रशाद हमे दिया। हम उन् आमो के इलावा पूज्य भगत जी का आशीर्वाद , उनकी सेवा भावना , उनकी तप साधना को हिरदय में समोय वहां से दिल्ली वापिस आगये।

पूज्य संत जी ने भगत जी की स्मृति में आयोजित समता सत्संग पंजाब खोर में 1987 में फ़रमाया था की "अगर उनके गुरु सामान , गुरुभाई पूज्य भगत जी के शरीर छोड़ने की सूचना उन्हें समय पर प्राप्त हो जाती तोह वह वहां अवश्य पहुंचते चाहे उन्हें चार्टर्ड प्लेन ही क्यों ना करना पड़ता।

संत जी उनकीआन्तरिक स्थिति को जानते थे, शायद हम लोग ही अपने अज्ञानवश भगत जी को ठीक से समझ नहीं पाए |

दास
प्रदीप आनंद

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