ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार!

*भक्त बनारसी दास-एक अलोकिक व्यक्तित्व*

-सुमन ऋषि-

जीवन में कुछ ऐसे पल आते हैं जिनको भूलना और सहन करना असम्भव तथा दुख दायक होता है। ऐसे ही आज से 34 वर्ष पूर्व हमारे सबके पूज्य भगत श्री बनारसी दास जी हम संगत से बिछड़ गए थे। ऐसे ही हमारे पूज्य महाराज जी भी संगत को छोड़कर 4 फरवरी 1954 के दिन ज्योति ज्योत समा गए और उनकी जुदाई सहन करनी उन प्रेमियों के लिए बहुत कठिन थी जो उनके समय में उनके साथ रहते, सत्संग में आते, अपनी मन की शंकाएं दूर करवाते, सवाल जवाब पूछते, ज्ञान विज्ञान तथा तत्व ज्ञान की बातें पूछते।

संसार में गुरु मिलना बड़ा भाग्य है । गुरु तो मिल जाते हैं परंतु सतगुरू मिलना बहुत कठिन है। हमारे गुरु महाराज की पदवी सतगुरु की पदवी है। महापुरुष कहते हैं जीवन में 2 वस्तुएं बहुत महत्वपूर्ण है। एक सद्गुरु दूसरा सद्गुरु का दर । मतलब गुरु और गुरु के दर का डर हो तो प्राणी की जीवन नौका पार हो जाती है । गुरु का डर होगा तो उनका आशीर्वाद, प्यार प्राप्त होगा। मन की चंचलता दूर होगी । उनकी रहमत सदा हमारे साथ होगी और जीवन यात्रा में सत मार्ग पर चलना सिखाते हैं। तभी तो श्री महाराज जी ने हमारी संगत को आशीर्वाद दिया।

जैसी जिसने प्रीत करी, सतगुरु चरणी माहीं । मंगत ऐसी गत मिली, भेद भरम दुख जाईं ।।

जब इंसान का इस संसार में जन्म होता है तो इंसान संसार के हालात-समय और घर की परिस्थितियों के मुताबिक बड़ा होता है और पलता है । हमारे मां-बाप हमें ईश्वर के बारे में तो बताते हैं परंतु जो जीवन की असलियत वास्तविकता है वह तो आपकी किस्मत या अच्छे कर्म होते हैं जिसके कारण आपको किसी महा ज्ञानी तपस्वी के दर्शन होते हैं । उनकी अनुभवता जीवन भर की असली कमाई, दिव्य ज्ञान और आत्मिक उन्नति के कारण इस सांसारिक प्रेमियों को अग्रसर करते हैं। सत और असत का ज्ञान देते हैं। जीवन में असली चीज क्या है इसके बारे में ज्ञान देते हैं और जिस कारण मनुष्य जून में आने का कारण समझाते हैं। आत्मा परमात्मा तथा तत्व ज्ञान की बातें बताते हमारे जीवन का सुधार करने की कृपा करते हैं। ऐसे ही एक महान पुरुष हमारे जीवन में आए उनकी कृपा से हमें जीवन का असली लक्ष्य क्या है ? बताया । वह महापुरुष थे श्री भगत बनारसी दास जी जो कि अपने गुरु में अटूट श्रद्धा विश्वास भक्ति और निष्ठा रखते थे और अपनी विवेक बुद्धि की बदौलत ही श्री महाराज जी के चरणों में 16 वर्ष रहकर उनके साथ जीवन व्यतीत किया । हम सब बहुत ही भाग्यशाली हैं ।

जो हम सब गुरु प्रेमी दो शुभ ग्रंथों की वाणी सुनने ग्रहण करने का सौभाग्य रखते हैं। यह दो ग्रंथ है श्री समता प्रकाश एवं श्री समता विलास। इस वाणी को समाधि अवस्था में उच्चारण करने वाले हमारे गुरु महाराज जी श्री महात्मा मंगत राम जी हैं तथा ग्रंथों को लिखने वाले श्री भगत जी थे। भगत जी को श्री गुरु महाराज जी के प्रति अपार श्रद्धा, स्नेह और विश्वास था। श्री महाराज जी ने उनकी भक्ति भाव, निष्ठा और विवेक को देख कर उनको भगत की पदवी दी। श्री बनारसी दास का जन्म रावलपिंडी में खन्ना परिवार में हुआ। उनके पिताजी का नाम श्री पूज्य नत्थुमल जी तथा माता जी का नाम श्रीमती गुरु देवी जी था। भगत जी का जन्म संवत 1916 में हुआ। अध्यात्मिक वृत्ति वाले सज्जन पुरुष स्वाभाविक ही आपस में मिल जाते हैं। ऐसे ही ईश्वर कृपा से हुआ जो ईश्वर भक्त और जिज्ञासु थे। मई 1936 में श्री ठाकुर दीवान सिंह जी और भगत जी ने श्री सद्गुरु जी के दर्शन एक यज्ञ में किए और थोड़े ही समय में गुरु महाराज ने भगत जी के दिल में प्यार निष्ठा और विवेक पैदा कर दिया और सतगुरु जी के चरणों में लगातार हमेशा के लिए रहने के लिए प्रार्थना करने लगे। आखिर श्री भगत जी तथा श्री ठाकुर दीवान सिंह जी पर गुरु कृपा हो गई और उनके चरणों में रहना शुरू हो गया। श्री महाराज जी के साथ जंगलों, बिया बानो में रहे। तन और मन से सेवा की और अपने कर कमलों से ग्रंथों की वाणी का लिखना शुरू किया।

श्री महाराज जी जंगलों पहाड़ों में समाधि की अवस्था में आते और वाणी का उच्चारण करते। श्री महाराज जी तो हम सबको 4 फरवरी 1954 में अमृतसर में छोड़ कर चले गए। इनके बाद श्री भगत जी ने प्रेम, भक्ति भाव और त्याग भाव से यह सब तत्वज्ञान की भेंट संगत में प्रचारक के रूप में की। हमारे ऋषि परिवार पंडित श्री बिहार लाल जी का परिवार इनके भाग्य भी श्री भगत जी ने जगाए। हमारे घर आते थे। हमें जीवन में ज्ञान विज्ञान सत मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे। श्री गुरु जी की कृपा से या आदेश से श्री भगत जी 14 जनवरी 1987 में शाम को हमारे घर करनाल जो कि कर्न नगरी है इधर आए और शाम को परिवार के साथ सत्संग किया। बड़ी ज्ञान विवेक की शिक्षा दी जो हमारे अच्छे भाग्य थे हमने ग्रहण की। यहां तक कि मेरे से प्रश्न किया, अग्नि कितनी तरह की होती है ? मैंने कहा भगत जी एक तरह की, जिससे हम खाना बनाते हैं । फिर उन्होंने हमारे शरीर के अंदर उर्जा का उसके बारे में बतलाया कि जिस शक्ति से हम जीवन में उच्च स्थिति हासिल कर सकते हैं। उस समय मुझे इतना विवेक ज्ञान नहीं था कि मैं यह सब बातें समझ सकूं। परंतु महाराज की कृपा से अब धीरे धीरे इस मार्ग पर चलने की शक्ति को वह ही प्रदान कर रहे हैं। श्री महाराज जी मेरे गुरु हैं। 1986 में जब अक्टूबर माह में वार्षिक सम्मेलन सत्संग जगाधरी आश्रम में हुआ तो मैंने श्री भगत जी से नाम दीक्षा ली उनसे आशीर्वाद लिया।

परंतु श्री भगत जी ने मुझे खास तौर पर कहा कि नाम दीक्षा तो दी, मैंने केवल आपको तरीका बताया है नाम जपने का, अभ्यास का, परंतु वास्तविक गुरु केवल आपके महाराज जी हैं। उनको आप सब कुछ समर्पण करो। श्रद्धा, विश्वास भावना से उनके चरणों में ही ध्यान रखना है और रहना है। यह भी मेरे अच्छे भाग्य पूर्व जन्म के कर्म हैं कि पूज्य महाराज जी का आशीर्वाद प्राप्त हो गया। श्री भगत जी को भी हमारे गुरु महाराज जी ही भगत की पदवी देकर गए हैं और उन्होंने कहा "जब तक सूरज चांद रहेगा बनारसी तेरा नाम रहेगा"। कितनी दया, प्यार और आशीर्वाद दिया। जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं आप देख नहीं सकते परंतु महसूस कर सकते हैं। यही बात हमने उस समय महसूस की जब श्री भगत जी को 15 जनवरी 1987 में सुबह-सुबह हार्ट अटैक हो गया। दर्द में भी "ओ साइयां", "ओ साइयां" ही बोलते जा रहे थे। हमें लगा यह श्री महाराज जी को बुला रहे हैं और कह भी रहे थे, "अब मेरा समय आ गया है"। ऋषि जी ने भी महसूस किया जैसे महाराज जी खुद भगत जी को लेने आए हैं। फिर डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने कहा इनको हार्ट अटैक ही है, हॉस्पिटल ले जाओ। हॉस्पिटल जाते-जाते भी पूरे रास्ते में "ओ साइयां" "ओ साइयां" ही बोलते रहे। घर से जाती बारी हमें कहा कि मेरे समान (बैग) में कुछ पैसे पड़े हैं वह जहांगीरपुर दे देना क्योंकि वहां पर आश्रम का निर्माण हो रहा है वहां पर श्री महाराज जी के गांव के लोग आकर बसे हुए हैं, पाकिस्तान से। जैसे ही हम हॉस्पिटल पहुंचे श्री भगत जी का इलाज शुरू हो गया। आराम आना शुरू हो गया। अचानक श्री भगत जी उठे उल्टी की, चिरमची में उनके दांत भी गिर गए। हमारे बेटों ने दांत भी चिरमची से निकाल लिए, परंतु उसी क्षण डॉक्टर ने कहा इनकी रिश्तेदारों को बुला लो। हमने कहा हम ही रिश्तेदार हैं। हम सब हैरान परेशान हो गए यह क्या हो गया। दुखी मन से इनको घर वापस लेकर आ गए। ज्योति ज्योत समा गए। मुझे तो पूरा विश्वास है कि श्री महाराज जी ने ही हमारे परिवार पर कृपा दृष्टि दिखाई और हमें अपने असली भगत के आखरी दर्शन करने का, उनका प्यार, आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला और आज तक हमें पूरा पूरा अटूट विश्वास है कि श्री महाराज जी तथा श्री भगत जी हमारे साथ हैं। हम उनके साथ ही रह रहे हैं, आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। घर आने पर दिल्ली वाली संगत, जगाधरी, सबको श्री भगत जी का पता दिया शाम को यह लोग आ गए और पूजा भगत जी का पार्थिव शरीर जगाधरी आश्रम ले गए। श्री भगत जी का सारा सामान इनको दे दिया था। संस्कार के लिए हम भी अगले दिन आश्रम में पहुंचे। साथ में सोनीपत से सहगल साहब और एक और प्रेमीजन हमारे घर आए और भगत भगत जी की चिट्ठी लेकर आए लिखा था, "तुम्हारे पास सोनीपत आऊंगा" आखिर में लिख दिया, "अगर शरीर रहा तो"

वह जानी जान थे। सब ज्ञान था। इसी करण नगरी में ही शरीर छोड़ा। इधर तो श्री कृष्ण भगवान भी आए थे। ऐसी बातें, यादें, अच्छे महापुरुष का साथ, उनका आशीर्वाद मिलना भाग्य से ही है। सबसे बड़ा आशीर्वाद हमारे पूज्य महाराज जी हम सब संगत को देकर गए हैं। वह है उनकी दिव्य वाणी। जीवन का असली खजाना मनुष्य योनि में आकर भाग्य से ही सुन सकते हैं, ग्रहण कर सकते हैं, अध्ययन कर सकते हैं। सबसे बड़ी शिक्षा तो श्री महाराज जी की है "सत्कर्म सत निश्चय, निर्मल पाऊं विचार"। इन असूलों पर चलने से इंसान का पूरा कल्याण हो सकता है। ओम ब्रहम सत्यम सर्व आधार।

* प्रश्नोत्तर *

प्रश्न : महाराज जी, यदि कोई तत्ववेत्ता सत्गुरु न मिले तो फिर क्या करना चाहिए?

उत्तर :प्रेमी, जिस जिज्ञासु के अन्दर प्रभु प्राप्ति के लिए अति प्रेम और श्रद्धा होती है तथा लगन और तड़प इस प्रकार की हो कि सिवाय भगवद् प्राप्ति के दूसरी कोई कामना चित्त के अन्दर न हो, उसे स्वयं ही भगवान किसी न किसी रूप में आकर दर्शन दे जाते हैं। एक नुक्ता और समझाते हैं। ज़रूरी नहीं कि तू मठों और गद्दियों में जाकर परेशान होता फिरे। अन्तर्यामी घट-घट की जानने वाले हैं। किसी न किसी प्रकार से उसे उपदेश मिल ही जाता है। करने वाले प्रभु ही हैं।

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