ॐ ब्रह्म सत्यम् सर्वाधार!
*मात्र संयोग या पूर्वाभास*
(प्रस्तुत लेख श्री पी. एल. ऋषि द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है। भगत बनारसी दास जी अपने अंतिम समय ॠषि जी के पास ही ठहरे ठहरे हुए थे)
किसी को भी अपने अंत काल का अनुमान लगाना असंभव सा ही होता है। वैसे, अपनी मृत्यु की पहले से जानकारी किसी साधारण मनुष्य के लिए अति त्रासदायक हो सकती है।
कभी कभी किसी व्यक्ति को अपने अंतिम समय के पास आने का थोडा बहुत अहसास होने लगता है, सीधे सपष्ट रूप मे नहीं तो कुछ संकेतों के माध्यम से। यह संकेत कई बार बाद मे दूसरे लोगों को समझ मे आते हैं।
ऋषि जी के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार भगत जी को मात्र आभास नहीं, अपितु ज्ञात हो चुका था कि उनका अंतिम समय है। इस बारे उन्हों ने स्वयं बडे सपष्ट संकेत दे दिये थे।
पहला और सबसे बडा संकेत माधोपुर से चलते समय एक देवी की कुछ दिन वहीं रहने की प्रार्थना पर यह कह कर दिया कि वे उनके या पिताम्बर ॠषि के घर करनाल मे ही शरीर त्याग करेंगे।
यह संकेत मानों एक घोषणा थी जो सच साबित हुई।
दूसरा संकेत भी उन्होंने स्वयं एक पत्र मे दिया था जो कि उनकी मृत्यु के बाद सामने आया। यह पत्र भगत जी ने सोनीपत निवासी वरिष्ठ प्रेमी श्री सहगल को कुछ दिन पहले लिखा था। यह एक पोस्ट कार्ड था जिसमे कि भगत जी ने दिल्ली जाने का प्रोग्राम बताते हुए लिखा था कि वे रास्ते मे सोनीपत मे उनसे मिलेंगे। नीचे भगत जी ने अपने हस्ताक्षर कर दिये थे, लेकिन बाद मे हस्ताक्षर के नीचे लिखा, कि... शरीर रहा तो।
यह पत्र भगत जी के शरीर त्यागने के बाद अदरणीय सहगल साहब ने श्री श्रृषि जी को दिखाया था।
इन दो संकेतों से भगत जी की उस समय की आंतरिक स्थिती का अनुमान लगाया जा सकता है।